पेड़ों पर पहरा
हेमन्त कुमार शर्मा
जंगल में रास्ते के आसपास पेड़ काटने के निशान थे। गार्ड ने देखा, “साले, आज भी हाथ से निकल गए।”
“सर, कल को मैं ही पहरा दूँ?” गार्ड के अर्दली ने कहा।
“उनके पास हथियार हुए फिर क्या करोगे?” गार्ड ने पूछा।
“सर, आपको चुपके से फोन कर सकता हूँ। आप गाँव वालों को लेकर आ जाना।”
रात को अर्दली ने फोन मिलाया। साहब सोए रहे। अन्य कईं रातें उसकी पहरे में बीती। ना तो उसने फिर फोन मिलाया, ना ख़बर दी। अलबत्ता उसके पुराने मकान की कच्ची छत थोड़े दिन में पक्की हो गई। घर में नई मोटरसाइकिल आ गई। पेड़ पहले से भी तेज़ गति से ठूँठ बनने लगे। और गार्ड गहरी नींद में सोता रहा देसी पीकर।
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