गाता हूँ पीड़ा को

01-12-2024

गाता हूँ पीड़ा को

हेमन्त कुमार शर्मा (अंक: 266, दिसंबर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

गुनगुनाता हूँ गाता हूँ पीड़ा को, 
कैसे रोकूँ मन में बैठी मीरा को। 
 
खो दिया मन में कहीं उसे अफ़सोस
फिरता बस्ती जंगल में अधीरा हो। 
 
भिक्षुक समझ बैठा था माँगने से, 
अन्तर में ख़ुद बैठा है फ़क़ीरा हो। 
 
फिर आशा से जागता है सुबह को, 
रात तक देखता उपेक्षा की क्रीड़ा को। 
 
धन से मूल्य है यहाँ मिट्टी का बन्धु, 
चाहे लाख मन जगमगाए हीरा हो। 

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