प्रभात हुई
हेमन्त कुमार शर्मा
कलरव खग कुल का, प्रभात हुई,
मन को मुग्ध कर दे सुवात हुई।
प्रकृति ने स्मित बिखेरी सर्वदिक्,
लगता है मानो हो कोई पर्व इक।
तम को सब ओर मात हुई।
ओस पत्रांक मध्य अभय सोई,
पुत्र जननी अंक में हो सुखमय कोई।
मुक्ताहल सी चमकी जब प्रभात हुई।
द्रुमदल सुवात मद्य पी झूमने लगे,
अलि भी सुमनों पर घूमने लगे।
कोयल की वाणी फिर उदात्त हुई।
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