सुनो तुम्हारे जाने के बाद
लगा जैसे कोई पत्ता
टहनी से टूट कर
बैठ गया है उदासी की गोद में।
तुम्हारे जाने के बाद
जैसे किसी ने वक़्त को
क़ैद कर दिया हो
तुम्हारी यादों के साथ।
तुम्हारे जाने के बाद
दरो दीवार सब ख़ामोश से
खिसियाते से लगते हैं।
रौनक़ अब किसी कोने से
बतयाती रहती है।
तुम्हारे जाने के बाद
हर शख़्स ख़ामोश सा खड़ा
तस्वीर की मानिंद
जड़ गया है उदासी के फ़्रेम में।
तुम्हारे जाने के बाद
शहर ने छोड़ दिया है
खिलखिलाना
मौसम भी पतझड़ सा
अनमना रुआँसा होकर
बैठा है दूब की फुनगी पर।
तुम्हारे वो कहकहे
वो गूँजते शब्द
बड़ी बड़ी आँखों से झलकता नेह
वो अपनापन
सब कुछ लगता है स्वप्न सा
तुम्हारे जाने के बाद . . .