सत्य के सन्दर्भ लेकर
झूठ निकले घूमने
शब्दरत्नों की लड़ी में
भाव रूपाकार है।
फूटता हर बुलबुला है
यही जीवन सार है।
अनगिनत कितने इशारे
शब्द लेकिन मौन हैं।
पीठ पर खंजर टिकाए
ये मेरे अपने कौन हैं।
किश्तियाँ फिर किनारों
पर लगीं क्यों डूबने।
सत्य के संघर्ष की
क्यों मौन है अभिव्यक्तियाँ।
आज फिर क्यों सर उठातीं
देश रोधी शक्तियाँ।
आज क्यों संघर्ष घायल
और मृत पुरुषार्थ है।
आज क्यों संवेदनाएँ
स्वार्थ हित हितार्थ हैं।
झूठ के गीतों के संग
हम लगे हैं झूमने।
जुगनुओं की ये शरारत
है चुनौती सूर्य को।
आज फिर ललकारता वह
प्रेम रंजित धैर्य को।
इस तरफ है नींद गहरी
उस तरफ नफरत अटल।
आज संसद मौन व्रत में
शत्रु की चालें सफल।
आज क्यों पथ कंटकों को
हम लगे हैं चूमने।