प्रिय तुम आना हम खेलेंगे होली

05-03-2016

प्रिय तुम आना हम खेलेंगे होली

डॉ. सुशील कुमार शर्मा

शातिरों के हाथों में जब
तहज़ीब के खंजर दिखने लगें
ख़ूंरेज़ आँखों में जब
शांति के मंज़र दिखने लगें
प्रिय तुम जब आना हम खेलेंगे होली

 

साहित्य में संस्कारों का
सैलाब जब दिखने लगे
रिश्तों में जब संवेदना रिसने लगे
प्रिय तुम जब आना हम खेलेंगे होली

 

देह का विकल्प जब
प्यार का संकल्प लगने लगे
मन के मकरंद पर जब
प्रेम का भँवर उड़ने लगे
प्रिय तुम जब आना हम खेलेंगे होली

 

शब्द जब सन्नाटों की जगह
अर्थ अपने चुनने लगें
विषधरों के फन जब
अमृत घट भरने लगें
प्रिय तुम जब आना हम खेलेंगे होली

 

पाप के पाखंड का
प्रायश्चित जब कर सको
प्रेम के अंकुर का
नवसृजन जब कर सको
प्रिय तुम जब आना हम खेलेंगे होली

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

काव्य नाटक
कविता
गीत-नवगीत
दोहे
लघुकथा
कविता - हाइकु
नाटक
कविता-मुक्तक
वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
सामाजिक आलेख
बाल साहित्य कविता
अनूदित कविता
साहित्यिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में