मेरे लिए एक कविता

01-02-2021

मेरे लिए एक कविता

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 174, फरवरी प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

मुझ पर क्या तुम
लिख सकती हो एक कविता?
 
जिसमें तुम्हारा मौन हो
सर्द सुबह में धुँध से लिपटी
तुम्हारी मुस्कान हो।
 
उस कविता में
मिट्टी के सकोरों में
पंछी की तरह पानी पीती
मेरी तुम्हें पाने की अधूरी
सी जिजीविषा हो।
 
उस कविता के अल्फ़ाज़ों में 
तुम बिन निष्प्राण, कल्पित
वंचित मृत्यु प्रमाणपत्र सा
अधूरा जीवन हो।
 
उस कविता के रंगों में
सीढ़ियों पर तुम बैठी
ललाम रंग की साड़ी पहने
देख रही हो मेरा रास्ता
तुम्हें पाने की पहाड़ी प्यास में
तुम्हें खोजता हुआ
मैं झरने सा बहता रहूँ।
 
उस कविता में
तुम्हारे मौन के प्रकल्प से
झरती उदासी, बिखरती मजबूरी ,
रिश्तों के बंधन हों
मुझसे न मिलने के संकल्प के साथ
मुझसे मिलने की अप्रितम चाहत हो।
 
उन छंदों में
अंतस की ज्योतिर्मय राह में
शुभ्र विभामय प्रवाह हो
राधा सा समर्पण
मीरा का अर्पण
तुम्हारे इंतज़ार में रीता मन हो।
 
लफ़्ज़ों की लड़ियों में
शब्दों को ओढ़े नादानियाँ हों
ओस से गिरते हमारे अहसास हों
सूरज की तुम्हारे रंग की धूप हो
सौन्दर्य बोध के मासूम सवाल हों
तुम्हारी सकपकाई सी मासूमियत हो
मेरे मासूम सपनों में
तुम्हारा कल्पित साथ हो।
 
उस कविता में
आकाश के काग़ज़ पर
समुन्दर की स्याही से
हमारे प्रेम के अनगिनत गीत
गुनगुनाते लम्हें हों।
मुस्कुराहट के लिबास में
तुम्हारी अनकही उदासी हो
रिश्तों और फ़रिश्तों में बटे
हमारे अबूझे व्यक्तित्व हों।
 
कविता के भावों में
प्रतीक्षारत रात की बाँहों में
थका हुआ सूरज हो।
छत पर शुभ्र चाँदनी सी तुम
मेरे अहसासों में बिखरी हो
तुम्हारे मस्तक पर
मेरे होंठों के चुंबन का टीका हो।
 
क्या तुम मेरे लिए
एक ऐसी कविता लिख सकती हो
जो तुम्हारे अंतर्मन से
सिर्फ़ मेरे लिए ही लिखी गई हो।

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