"आख़िर तुम चाहती क्या हो?"अनिमेष झल्लाया।
"बस यही कि तुम मुझे इंसान समझो कोई उपयोग की वस्तु नहीं," मीता ने सपाट लहजे में कहा।
"उपयोग की वस्तु समझता तो तुम्हारे ऐशो-आराम की हर ज़रूरत पूरी नहीं करता," अनिमेष ने तल्ख़ लहजे में कहा।
"उसके बदले में तुम्हें मेरा शरीर मिला है जिसे तुमने जी भर कर लूटा," मीता के स्वर में दर्द था।
"हिसाब बराबर फिर ये सब शिकायतें क्यों?"अनिमेष के स्वर में हताशा थी।
"सही है शिकायतें तो अपनों से की जाती हैं दुकानदारों से नहीं। "मीता उठी और किचिन में घुस गयी।