पथिक

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 203, अप्रैल द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

पथिक हो? 
फिर विराम क्यों? 
चलना तेरा काम है
फिर आराम क्यों? 
 
पथिक हो? 
फिर पथ पर पड़े
कंकरों से
तुमको भय क्यों? 
 
पथिक हो? 
फिर पथ पर
चलने से तुम को
थकावट क्यों? 
 
पथिक हो? 
फिर हार जाने के 
डर से तुम को
घबराहट क्यों? 

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