सदाशिव

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 249, मार्च द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

मैं कालों का काल हूँ
मैं ही तो महाकाल हूँ। 
सत्य का पालनहार हूँ
असत्य का करता
सदा विनाश हूँ। 
मैं देवों का देव हूँ
मैं ही तो महादेव हूँ। 
अंधकार में करता प्रकाश हूँ
अंत का भी करता आरंभ हूँ
तभी तो मैं परमांनद हूँ। 
मैं महाकाली का महाकाल हूँ
करता समय आने पर
काल भी विनाश हूँ
तभी तो सदाशिव महाकाल हूँ। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
बाल साहित्य कविता
सामाजिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में