कुवलय

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

कला का पुरस्कार 
अब मिलता नहीं है 
चित्र विचित्र होकर भी
कोई बिकता नहीं। 
 
घर की वापसी 
अब कोई करता नहीं 
प्रजातंत्र के लिए 
कोई लड़ता नहीं। 
 
सभ्यता व संस्कृति से
अब कोई डरता नहीं
श्रमिक के लिए किसी से 
कोई भिड़ता नहीं। 
 
अमल-धवल महामानव 
अब कोई मिलता नहीं
निदाग कुवलय सा शख़्स 
कोई दिखता नहीं। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
बाल साहित्य कविता
सामाजिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में