गर्माहट 

15-06-2024

गर्माहट 

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 255, जून द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

बहुत अच्छा लगता है न 
तुमको जीवों को 
पका कर
स्वाद से खाना। 
 
प्रकृति भी तो 
पका रही हैं 
अब तुमको 
सूर्य की तप्त किरणों में। 
 
उसको भी तो 
थोड़ा स्वाद आना चाहिए 
तुम को रुलाने में। 
 
बहुत अच्छा लगता है न 
तुमको चुपचाप 
अग्नि को सुलगा कर 
वनों को 
जलता हुआ देखकर। 
 
प्रकृति भी तो 
सुलग रही हैं आग 
सूर्य की किरणे बन कर। 
 
उसको भी तो 
थोड़ा आनंद आना चाहिए 
तुम को तपा कर। 

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