इंतज़ार

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 286, अक्टूबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

अँधेरों को जैसे
रोशनी का इंतज़ार है। 
नफ़रत को जैसे
मोहब्बत का इंतज़ार है। 
बादलों को जैसे
बरसने का इंतज़ार है। 
राहों को जैसे
हमराही का इंतज़ार है। 
वृक्षों को जैसे
खिलते हुए पत्तों का इंतज़ार है। 
सूखी भूमि को जैसे
वर्षा का इंतज़ार है। 
सावन को जैसे
बहारों का इंतज़ार है। 
वैसे मुझे तुम्हारा
मेरे जीवन में इंतज़ार है। 

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