आजीवन

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 195, दिसंबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

जीवन के पथ पर
यहाँ से वहाँ जा रहा हूँ,
समझ नहीं आता
क्या कर रहा हूँ
और क्या नहीं कर रहा हूँ।
 
जीवन की डगमग करती
नाव में बैठकर
ज़िंदगी का सफ़र
तय कर रहा हूँ।
 
कभी तूफ़ानों का
मंज़र देख रहा हूँ
तो कभी बदलती
हवाओं का रुख
महसूस कर रहा हूँ।
 
कभी शिखर पर चढ़कर
क्षितिज को ढूँढ़ रहा हूँ,
तो कभी क्षितिज के पार जाकर
आसमान को छू रहा हूँ।

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