स्वयं

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 244, जनवरी प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

हर जगह
मैं ही सही हूँ
ख़ुदा थोड़ी हूँ। 
 
हर जगह
मैं ही ग़लत हूँ
इतना बुरा थोड़ी हूँ। 
 
हर जगह
झुक जाऊँ
इतना गिरा हुआ थोड़ी हूँ। 
 
हर जगह
मैं जीत जाऊँ
इतना बड़ा सिकंदर थोड़ी हूँ।  
 
हर जगह
मैं हार जाऊँ
इतना बुज़दिल थोड़ी हूँ। 
 
हर जगह
मैं सहम जाऊँ
इतना डरा हुआ थोड़ी हूँ। 
 
हर किसी का हक़
मैं खा जाऊँ
इतना ख़ुदग़र्ज़ थोड़ी हूँ। 

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