आधुनिक घुसपैठिए

15-09-2024

आधुनिक घुसपैठिए

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 261, सितम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

सदियों का संताप 
अब ठहर सा गया है। 
 
घरौंदो से निकल कर 
आधुनिकता की दहलीज़ पर 
बह सा गया है। 
 
तराशा हुआ आदमी 
महानगर की गुलामगिरी में
ढह सा गया है। 
 
भौतिकता का घुसपैठिया 
नगर से गाँव तक 
छा सा गया है। 
 
विश्वबंधुत्व
मुआयने के शिखर में
बंगड़ मेघ की भाँति 
रह सा गया है।

 

बंगड़=आवारागर्द ठग

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