बदलते रंग

15-03-2022

बदलते रंग

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 201, मार्च द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

बदलते हुए रंगों के साथ
बदलते हुए
अपने लोग देखे हैं। 
 
चेहरे पर नक़ाब ओढ़े
सीने पर वार करते
अपने ही लोग देखे हैं। 
 
हरे रंगों जैसी
अब लोगों के दिलों में
हरियाली कहाँ? 
अपने ही लोग
ख़ंजर फेर
हृदय तल को
बंजर करते देखे हैं। 
 
रंगों की बौछार
फैली है हर जगह
फिर भी
गिरगिट की तरह
रंग बदलते
अपने रिश्तेदार देखे हैं। 
 
करते होंगे मोहब्बत वो
शायद किसी और से, 
हमने अपने लिए तो
उनके चेहरे पर
नफ़रत के बदलते
नए-नए रंग देखे हैं। 

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