दीप

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 241, नवम्बर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

सुनो! 
दीपों का त्योहार आ रहा है
कुछ रोशनी
अपने अंदर भी कर लेना। 
 
सुना है! 
अंधकार बहुत है
तुम्हारे अंदर भी
तभी दिखता नहीं तुम्हें
औरों का व्यक्तित्व। 
 
मगर दिख जाता है
सत्य की रोशनी में
औरों को तुम्हारा अहम। 
 
क्या मिट जाएगा? 
इस बार
दीपों की रोशनी में
तुम्हारा ज़िद्दी अहम। 

1 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
बाल साहित्य कविता
सामाजिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में