ख़ुदग़र्ज़ी

01-09-2023

ख़ुदग़र्ज़ी

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 236, सितम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

गिर रही हैं न
ये जो आसमाँ से तड़फती बूँदें
कभी तुम इनसे
मज़ा लेते हो
तो कभी ये डूबकर
तुम्हारे अस्तित्व को मज़ा लेती है। 
 
बह रही हैं न ये नदियाँ
कभी ख़ुद बहती हैं
अपनी ही मस्ती में
तो कभी तूफ़ान बन
तुम को बहा
ले जाती हैं समुंदर में। 
 
बर्फ़ से ढके हैं न
जो ये पर्वत
कभी तुम इनका
आरोहण करते हो
तो कभी ये दबा देते हैं
तुम्हारी ज़िद्दी शख़्सियत को। 

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