शेष है

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 222, फरवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

मृत्यु का पता नहीं
मगर श्रेष्ठ जीवन
अभी शेष है। 
 
नफ़रत का पता नहीं
मगर मोहब्बत की अभिलाषा
अभी शेष है। 
 
आत्मसमर्पण का पता नहीं
मगर आत्मबलिदान का बोध
अभी शेष है। 
 
मन में पनपते क्रोध का पता नहीं
मगर हृदय के आँचल में शान्ति
अभी शेष है। 
 
आत्मग्लानि का पता नहीं
मगर आत्म साक्षात्कार का बोध
अभी शेष है। 
 
जीवन में लगी ठोकरों का पता नहीं
मगर खड़े होकर मार्ग पर चलना
अभी शेष है। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
बाल साहित्य कविता
सामाजिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में