सामंजस्य

15-03-2024

सामंजस्य

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 249, मार्च द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

जब आहत हृदय
श्मशान बन जाए तो
उसमें लाशें नहीं 
भावनाएँ राख हुआ करती हैं। 
 
जब विश्वासी हृदय में
बिखराव आ जाए तो
अपने और पराए नहीं
बस मौन रहा करता है। 
 
जब वेदिती हृदय
राख बन जाता है
सुख और दुख नहीं 
बस स्थिरता रहती है। 
 
जब खंडित हृदय
अखंडित हो जाए तो
उसमें आह और वाह नहीं
बस जीवन की चाह रहती है। 

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