कुछ सीखा है

01-12-2025

कुछ सीखा है

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 289, दिसंबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

टूटे हुए लफ्ज़ों को
बटोर कर मैंने
लिखना सीखा है। 
बहते अश्कों के 
दरिया में डूबकर
मैंने तैरना सीखा है। 
 
जिस मिट्टी में 
मेरे अपनों ने ही
मुझे मिट्टी किया, 
उस मिट्टी से मैंने
ख़ुद को ढालना सीखा है। 
 
जिस ऊँचाई के 
अहं में लोगों ने
मुझे नीचे गिराया, 
उस ऊँचाई के भी
आसमाँ को मैंने 
छूना सीखा है। 
 
मुक़ाम-ए-दौर में
अपनों से ही मुझे 
जो ठोकरें मिलीं, 
उन ठोकरों से मैंने 
आगे बढ़ना सीखा है। 

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