दिव्य प्रेम

01-12-2025

दिव्य प्रेम

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 289, दिसंबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

जब मैं शांत हो जाऊँगा
तुम अशांत हो उठोगे
हृदय के अंतकरण तक। 
 
मेरा मौन
सदा के लिए तुम्हारे हृदय में
अशांति को विद्यमान कर देगा। 
 
मेरे प्रेम की अभिव्यक्ति
तुम्हारे लिए करना
कठिन से भी कठिन हो जाएगी। 
 
नव नासिका का
भेदन करता हुआ मैं
कभी दशम द्वार के
परमानंद के अमृत कलश का
अमृत पीता हूँ। 
 
तो कभी अनाहत मैं बैठे
अपने इष्ट का स्पर्श कर
हँसता मुस्कुराता हुआ
फिर इस धरा पर
चुपचाप लौट आता हूँ। 
 
अपने अतृप्त हृदय के लिए
तुम्हें सहस्रार का भेदन कर
दिव्य प्रेम सरिता में
डूब कर मुझ में
लीन होना ही होगा। 

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