नई दिशा

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 287, नवम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मन्नत एक सीधी सादी और घर की इकलौती बेटी थी। हर काम करने में सबसे आगे रहती थी बस दूसरों के आगे बात करने में उसको हिचकिचाहट होती थी और अक्सर ज़्यादा लोगों को देखकर वो घबरा जाती थी। 

इस बार गाँव में बने नए विद्यालय का उद्घाटन होना था। जिसमें प्रदेश के शिक्षा मंत्री मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हो रहे थे। मन्नत के पिता गाँव के सरपंच थे इसलिए कार्यक्रम का सारा भार उसके पिता पर था और वो पिता का हर काम में हाथ बँटा रही थी। 

आयोजन का दिन आया सभी बहुत ख़ुश थे क्योंकि शिक्षा मंत्री स्वयं पहली बार उनके गाँव में आ रहे थे मगर कार्यक्रम के आरंभ में ही बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई क्योंकि जिस मंच संचालक को बुलाया गया था, वो किसी कारण नहीं आ रहा था और उधर मंत्री जी के आने का समय भी हो रहा था। 

मन्नत के पिता ने गाँव के सभी लोगों से बात की मगर कोई भी मंच संचालन करने को तैयार नहीं हो रहा था। अपने पिता का उदास और उतरा हुआ चेहरा देखकर आख़िर मन्नत ने पिता से कहा, “पिताजी परेशान मत होइए अगर कोई भी व्यक्ति तैयार नहीं हो रहा तो मैं इस कार्य को स्वयं करने की कोशिश करूँगी।” 

पिता ने कहा, “मगर मन्नत बेटा तुम्हें तो लोगों को देखकर घबराहट होती है।” 

मन्नत ने कहा, “पिताजी मेरी घबराहट से बड़ी गाँव की और आपकी प्रतिष्ठा है जिसको मैं कभी ख़राब नहीं होने दूँगी।” 

इतना बोलकर मन्नत मंच पर जा पहुँची और उसी समय मंत्री जी भी कार्यक्रम में पहुँच गए। मन्नत ने बड़े अच्छे से मंच का संचालन किया और लोगों की ख़ूब वाह-वाही बटोरी। स्वयं मंत्री जी ने भी मन्नत की बड़ी तारीफ़ की। इसके बाद मन्नत को नई दिशा मिल गई क्योंकि उसके मंच संचालन की ख़बर और वीडियो सोशल मीडिया पर छा गई। 

अब कहीं भी कोई कार्यक्रम होता तो मन्नत को मंच संचालन के लिए आवश्यक बुलाया जाता और अब मन्नत एक सफल मंच संचालिका बन चुकी थी। 

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