मिथ्या फड़फड़ाहट

15-08-2025

मिथ्या फड़फड़ाहट

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 282, अगस्त प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

क्यों? 
अब टूट गया
अहम का वहम
तुम तो कहते थे
सब कुछ मैं ही हूँ। 
 
मेरे इशारे पर ही
सब चलता है
मैं न चाहूँ तो
यहाँ पत्ता भी न हिलता है
 
क्या? 
अब भी कोई
पूछता माँगता है? 
शायद नहीं
क्योंकि ज़िद्दी व्यक्तित्व
हर किसी को रास नहीं आता है। 
 
बीत गया न वक़्त
चली गई न सत्ता
आहत कर रहे हैं न अपने
क्या अब भी बचा है
अहम का वहम? 

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