इंसाफ़
राजीव डोगरा ’विमल’काल कहीं दूर नहीं है
आसपास ही घूम रहा है,
देख रहा है
सबकी भावनाओं को,
परख रहा है सब की
डगमगाती आस्थाओं को,
देख रहा है
मानव से दानव बने
इंसान की चलाकियों को।
काल झाँक रहा है
खिड़कियों से दरवाज़ों से
उसी तरह
जिस तरह तुम झाँकते हो
दूसरों की बहू बेटियों को।
बस फ़र्क़ इतना है
काल झाँक रहा है
तुम्हारे किए गए गुनाहों को।
और तुम आज भी छिपा रहे हो
अपनी गंदी निगाहों को।
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