मिथ्या आवरण

01-05-2025

मिथ्या आवरण

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 276, मई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

ईमान को बेचकर कभी 
ईमानदार नहीं बना जाता। 
दर्द देकर कभी किसी का 
हमदर्द नहीं बना जाता। 
 
इंसान को तोड़कर कभी 
इंसानियत का दावेदार 
नहीं बना जाता। 
 
बीच राहों में छोड़कर 
हमसफ़र को कभी
हमराही नहीं बना जाता। 
 
कल-कल कर कभी 
पल-पल का जीवंत जीवन 
नहीं जिया जाता। 
 
देकर औरों को दुख कभी
ख़ुद के चेहरे पर
ख़ुशियों का झूठा मुखौटा 
नहीं पहना जाता। 

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