मननशील

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मैं जिसके ध्यान में
हरदम मग्न रहता हूँ
उसको सारे जगत का
निरंतर ध्यान रहता है। 
 
मैं जिसके मोह में
सब कुछ भुला बैठा हूँ
उसने सारी दुनिया को
मोह में डाल रखा है। 
 
मैं जिसके प्रकाश की
एक किरण के सामान भी नहीं
उसने सारे जगत को
प्रकाशवान कर रखा है। 
 
मैं जिसके प्रेम में
सदा आतुर रहता हूँ
उसने सारे जगत को
अपने प्रेमपाश में बाँध रखा है। 

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