जीवन क्रीड़ा

15-04-2025

जीवन क्रीड़ा

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 275, अप्रैल द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

सोच न बंदे गंदगी
तू कर ले ईश्वर की बंदगी। 
 
यही तो जीवन की मर्यादा है 
तु ख़ुद का ही भाग्य विधाता है। 
 
अजर अमरता को रहने दें
जीवन को विभिन्न सुर में बहने दें। 
 
जीवन में जो भी आता है 
उसको उल्लास से आने दें। 
 जीवन से जो भी जाता है
उसको भी मुस्कुराते हुए जाने दें। 
 
मस्ती को अपनी हस्ती में रहने दें
जीवन को सस्ती बस्ती में बहने दें। 

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