अजीब दास्तां

15-05-2024

अजीब दास्तां

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 253, मई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

अंदर ही अंदर लोग 
कफ़न ओढ़ रहे हैं
मोहब्बत के नाम पर 
दफ़न हो रहे हैं। 
 
देखते नहीं सुनते नहीं 
समझते भी नहीं
बस मोहब्बत के नाम पर 
ग़म ढो रहे हैं। 
 
अपनों का परायों का 
यहाँ कोई भेद नहीं
अपने मतलब के लिए 
बस छल कर रहे हैं। 
 
जीत का हार का
किसी को कोई मतलब नहीं 
बस अपने रुत्बे के लिए
औरों को गिरा रहे हैं। 

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