सर्वविद

01-06-2025

सर्वविद

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मैं वो भी सुनता हूँ 
जो तुम कहते हो
मेरी पीठ के पीछे
चुपके से
फिर भी एक चुप्पी है, 
लबों पर 
क्योंकि आवरण है 
मेरी विशुद्धि पर 
अनाहत के मधुर स्वर का। 
 
मैं वह भी देखता हूँ 
जो तुम औरों को
दिखाना नहीं चाहते 
और ख़ुद से कभी 
छिपाना नहीं चाहते, 
फिर भी एक निशब्दता है
होंठों पर
क्योंकि आच्छादन है
मेरे दशम द्वार पर
सहस्त्रार की अखंड ज्योति का। 

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