उड़ान

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 222, फरवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

सुन मेरे मन के परिंदे
आगे ही तू बढ़ता चल। 
न सोच तू इन राहों का
बस आगे ही निकलता चल। 
 
न सोच तू राहगीरों का
वो भी ख़ुद पंथ पे मिल जाएँगे। 
न सोच तू इन हवाओं का
ये भी एक दिन बह जाएँगी। 
 
न सोच तू इन तूफ़ानों का
ये भी एक दिन थम जाएँगे। 
न सोच तू इस अंनत व्योम को
इसको भी एक दिन तुम छू जाओगे। 
 
न डर तू अनजान राहों से
ये भी एक दिन परिचित हो जाएँगी। 
सुन मेरे मन के परिंदे
बस तू आगे बढ़ता चल
अपनी उड़ान यूँ ही तू भरता चल। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
बाल साहित्य कविता
सामाजिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में