भीतर

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 234, अगस्त प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

मुझे कविता में
नया दौर सीखना है। 
मुझे मोहब्बत में
अभी और सीखना है। 
 
तिलमिलाहट सी होती है
भीतर ही भीतर
नए शब्दों को सीख कर
मुझे नए भावों का आयाम
अभी और सीखना है। 
 
दबी हुई बातें हैं कुछ भीतर
जो दबा देती है
सदैव ही अस्मिता को मेरी
निकालकर उनको बाहर
अभी नया जहान जीना
अभी और सीखना है।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
बाल साहित्य कविता
सामाजिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में