राम

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 192, नवम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

राम-राम करते हो
तुम रावण बनने के
लायक़ भी नहीं।
 
ज्ञान-ज्ञान करते हो
तुम अज्ञानी बनने के
लायक़ भी नहीं।
 
ध्यान-ध्यान तुम करते हो
तुम ज्ञान के
लायक़ भी नहीं।
 
स्वयं को न जाना
न ही पहचाना कभी
फिर भी महाज्ञानी
बने फिरते हो।
 
राम तो कण-कण में रमते हैं
फिर भी तुम
क्षण-क्षण पाप कर्म
करते फिरते हो।

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