दिल की गहराई

01-08-2021

दिल की गहराई

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

दिल की गहराइयों में
तुम्हें छुपा रखा,
अपने चेहरे की मुस्कराहट में
तुमको जमा रखा है।
सोचता हूँ
तुमको भूल जाऊँ,
मगर प्रकृति के कण-कण में 
फैली ख़ुशबू में 
तुमको समा रखा है।
सोचता हूँ 
तुमको छोड़ दूँ,
मगर अंतर्मन की
बिखरी सिमटी गहरी यादों में 
तुमको छुपा रखा है।
सोचता हूँ
मैं काफ़िर हो जाऊँ,
मगर तेरी यादों की गहराई ने
आज भी मुझे
आशिक़ बनाए रखा।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
बाल साहित्य कविता
सामाजिक आलेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में