यह कैसी उड़ान थी? 

15-10-2025

यह कैसी उड़ान थी? 

मधु शर्मा (अंक: 286, अक्टूबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

इस समय आकाश में वह दो-दो उड़ानें भर रही थी—पहली वह जो सपनों से भरी उसके नवजीवन के शुरूआत की, व दूसरी उड़ान यह कि अमेरिका की ओर जा रही उसकी पहली-पहली हवाई-यात्रा। 

तभी अचानक पन्द्रह दिन की नवविवाहिता शालिनी की साथ वाली सीट पर बैठे उसके पति के चन्द ही शब्दों ने उसे जैसे आकाश से पाताल में ला पटका। 

शालिनी को जब कुछ कहते न सूझा तो आँखें बन्द किये उसने सो जाने का नाटक किया। सकते में आये हुए उसका दिमाग़ सुन्न हो चुका था। लेकिन आध-पौन घंटे बाद उसके विचारों का ऐसा ताना-बाना शुरू हुआ कि एयर-हॉस्टैस द्वारा परोसी गयी ट्रे में से वह कुछ खा-पी न सकी। पति से बहाना बना दिया कि यात्रा के दौरान कुछ खाने से उसकी तबियत ख़राब हो जाया करती है। कम बातचीत करने वाले उसके पति ने उसपर दबाव न डालकर चुपचाप उसकी ट्रे में से भी अपनी मनपसंद सभी डिश निकालीं और भोजन करने में लीन हो गया। 

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मन ही मन अपने-आप से प्रश्न करती शालिनी ख़ुद ही को जवाब देने की कोशिश में लग गई . . . “क्या मैं अमेरिका पहुँचकर एयरपोर्ट अधिकारियों से विनती कर भारत लौट जाऊँ? . . . नहीं, नहीं, मेरे मम्मी-पापा पर उस वक़्त जो कुछ गुज़रेगी, यह मैं ही जानती हूँ।”

उनकी पहली सन्तान होने के कारण शालिनी अपने परिवार की अन्दर-बाहर की सभी परिस्थितियों से भलीभाँति परिचित थी। उसके दोनों बहन-भाई को तो कई बातों की भनक तक न पड़ पाती थी। 

उदाहरणार्थ जब उसके पापा के रिटायर होने में तीन ही बरस रह रह गये थे, तभी उन्हें अपने बहन-भाइयों व अन्य रिश्तेदारों की ज़िम्मेदारियाँ निबटाने पर अपने ख़ुद के रहने के लिए मकान बनवाने की सुध आई। सरकारी कर्मचारी होने के नाते रिटायर होने पर उन्हें सरकारी कोठी छोड़ देनी थी। परन्तु इतने कम समय में उसके पापा के पास इतना पैसा कहाँ से आता। किसी तरह मन पक्का कर उन्होंने अपना ग्रैटुइटी-फ़ंड निकलवाने के साथ-साथ भारी-भरकम क़र्ज़ ले लिया। गत दो वर्षों से उनके वेतन से हर माह कितनी ज़्यादा मात्रा की किश्त कट कर जा रही है, यह बात शालू की मम्मी ने केवल शालू से ही साझा की थी। 

इसके बावजूद भी शालिनी के विवाह का सारा प्रबन्ध बढ़िया तौर-तरीक़े से किया गया। कारण यह था कि एक तो घर में पहला विवाह था, और दूसरा यह कि विदेश में रहने के कारण उसके ससुराल वालों ने दहेज़ नहीं माँगा था . . . मना कर दिया कि भारत में इधर-उधर सामान रखवा भी लिया तो उनके किस काम का! 

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“क्या वाक़ई जोड़ियाँ ऊपर आसमान से बन कर आती हैं . . .?” शालिनी को वे दिन याद आ रहे थे जब उसके लिए कोई रिश्ता आता तो कभी मम्मी यह कह कर मना कर देतीं कि क्या हुआ लड़का अगर प्रोफ़ेसर है, लेकिन लड़के की मम्मी तेज़ स्वभाव की लग रही हैं। या हमारी शालू के सामने यह क़द में छोटा लगेगा, या फिर लड़का हमारी बेटी के मुक़ाबले दिखने में इतना सुन्दर नहीं . . . तो शालिनी और उसके पापा उन्हें समझाते कि लड़के के गुण देखे जाते हैं न कि उसका क़द-काठ। परन्तु पापा की भी तो माँगें कम न थीं . . . लड़का मिनिस्टर होकर शालिनी का हाथ माँग रहा है तो क्या? वह हमारी बेटी से कम पढ़ा-लिखा है, या वो जो डॉक्टर की बहन हमारी शालू को अपनी भाभी बनाना चाहती है, लेकिन बेटी को गाँव में ससुराल वालों के साथ रहना पड़ेगा, कैसे रह पायेगी . . . उसने तो ज़िंदगी में कभी गाँव में क़दम रखा ही नहीं, इत्यादि इत्यादि। 

और यह वाला रिश्ता जब आया तो लड़के के गुणों वाली लिस्ट में शालिनी के मम्मी-पापा दोनों का टिक पर टिक लगता चला गया। पापा की केवल एक शर्त थी कि लड़के ने जो इंजीनियरिंग की है, उसकी डिग्री दिखा दें तो लड़के वालों के कहे मुताबिक़ चट मँगनी पट ब्याह कर देंगे। लड़के के जीजाजी ने तब शालू के पापा का हाथ पकड़ कर कहा, “भाईसाहब! आप जैसे देवता आदमी को धोखा देकर हमें क्या नर्क में जाना है?” यह सुनकर उसके सादा से पापा ने रिश्ते के लिए 'हाँ' कर दी। 

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शालिनी की सोच की कड़ी तब टूटी जब उसका पति अपनी सीट से उठकर वॉशरूम की ओर गया। शालिनी के भीतर आँसुओं का रुका हुआ बाँध तब टूट कर बाहर आ गया। परन्तु ख़ुद को हौसला देते हुए वह कह उठी, “नहीं, नहीं शालू! पहले अपना मन शांत करो, तब ही तो कुछ सही ढंग से सोच सकोगी . . . हर मुश्किल का हल कहीं न कहीं मिल ही जाता है।” 

वह फिर से ख़ुद से सवाल पूछने लगी, “तुम क्या अकेली हो जिसके साथ धोखा हुआ है या फिर कम पढ़े-लिखे पति क्या अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभाते?” और उत्तर भी उसे स्वयं मिल गया। उसी के रिश्तेदारों में ही दो-एक पुरुष हैं ऐसे, लेकिन फिर भी पत्नी सहित पूरे परिवार की जितनी सही देखभाल वे करते हैं, वह कितने ही डिग्री-होल्डर पति भी नहीं कर पाये। 

“तो क्या हुआ शालू, यह तुम्हारे पति इंजीनियर न होकर मैट्रिक पास हैं! झूठ बोलकर तुम्हें ब्याह तो लाये लेकिन क्या मालूम तुम्हें इनसे ढेरों प्यार और सुख मिले, जो तुम सोच भी नहीं सकतीं!” 

बुरी तरह टूट चुकी शालिनी ने स्वयं को तसल्ली देने के बाद कुछ हल्का महसूस किया, और फिर पति के अपनी सीट पर लौटने से पहले ही वह आँसुओं से तर अपने चेहरे को जल्दी-जल्दी पोंछने लगी। 

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