विवश अश्व

01-06-2022

विवश अश्व

मधु शर्मा (अंक: 206, जून प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

भ्राता राम की आज्ञा सुन, लाचार हुए लक्ष्मण, 
भाभी सीता को भ्रमण के बहाने छोड़ आये वन। 
 
देख कर अपने स्वामी की शोकातुर मनोस्थिति, 
रथ के अश्वों ने यह कह कर धीमी कर दी गति, 
जिन पाँवों पर गर्व था हमें, नहीं अब दे रहे साथ, 
पवन समान दौड़ने वाले ये लड़खड़ा रहे हैं आज। 
 
देवी उर्मिला के नाथ! हो रहे क्यों शोकग्रस्त आप? 
माँ सीता को वनों में छोड़, होते क्यों आहत आप? 
एक अज्ञानी द्वारा लगाये लांछन सुन ज्ञानी राम भी, 
पतिव्रता की पवित्रता का दे न सके वे प्रमाण कोई। 
 
मूक प्राणी हैं हम कैसे कह पाते उन्हें हृदय की बात, 
गर्भिणी अर्धांगिनी का प्रभो! यूँ न कीजिए परित्याग। 

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