जाते जाते जो कुछ वो कर गये

15-11-2024

जाते जाते जो कुछ वो कर गये

मधु शर्मा (अंक: 265, नवम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

212    12 21    212
 
जाते जाते जो कुछ वो कर गये,
टूटे और न ही हम बिखर गये।
 
रोते रोते हम खिलखिला उठे,       
दिन दुखों के जो देखे ढल गये।
 
चोट लगनी वाजिब थी जब गिरे
और ज़ख़्म भी ख़ुद ही भर गये।
 
मिलने आते हमसे अज़ीज़ क्यों,
बरसों बाद जब अपने घर गये।
 
कैसे सामने आते आपके,
आप के लिए जो कि मर गये।
 
देख के हवाओं का रुख़ ‘मधु’
छाछ भी जला देगी, डर गये।

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