आने वाला कल

01-03-2022

आने वाला कल

मधु शर्मा (अंक: 200, मार्च प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

गिरवी रखवा के अपना ज़मीर साहूकारों को, 
बेचते मिलेंगे लोग शर्म, कुछ दुकानदारों को। 
 
बोलबाला था सच का किसी ज़माने में कभी, 
ढूँढ़ रही होगी नस्लें हमारी उन ईमानदारों को। 
 
छीन के दिन-दहाड़े हक़ असली मालिकों का, 
दस्तावेज़ दे दिये जायेगें नक़ली हक़दारों को। 
 
पड़ रहे ताले होंगे चर्च, मंदिर और गुरद्वारों को, 
पड़ेगा न कोई फ़र्क मगर धर्म के ठेकेदारों को। 
 
धरती वही, दुनिया वही फिर गड़बड़ी कैसे हुई, 
समझ न आ सकेगी यह बात, समझदारों को। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सजल
स्मृति लेख
लघुकथा
चिन्तन
कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
किशोर साहित्य कविता
ग़ज़ल
किशोर साहित्य कहानी
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता-मुक्तक
कविता - हाइकु
कहानी
नज़्म
सांस्कृतिक कथा
पत्र
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
एकांकी
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में