कुछ कड़वे सच — 01

01-04-2023

कुछ कड़वे सच — 01

मधु शर्मा (अंक: 226, अप्रैल प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

लोग ही जब बाज़ न आएँ पैसा बहाने में, 
धूर्त क्यों मौक़ा गँवाएँ गुरु कहलवाने में। 
 
ऊँची रहे नाक सो गहने गिरवी रखवा दिये, 
लुटा दिया सब, दोस्तों का दिल बहलाने में। 
 
अमीर पिता उधर बिस्तर पे दम तोड़ रहा था, 
और इधर बेटे मश्ग़ूल हो गये जश्न मनाने में। 
 
इतना बड़ा बवाल, नन्हे से बच्चे की बात पर
ख़ुशी कौनसी ऐसी तुम्हें मिली उसे रूलाने में? 
 
सज़ा पाई बेक़सूर ने, किस की साज़िश थी? 
सच ने तो पूरी कोशिश की इंसाफ़ दिलाने में। 
 
लूटकर इज़्ज़त बच्ची की इज़्ज़तदार ने कहा, 
ज़रा सी ऊँच-नीच हो गई थी पीने-पिलाने में। 
 
कोविड को समझा था अफ़वाह जिन्होंने, मधु, 
क़सूरवार निकले हैं वही लोग इसे फैलाने में। 

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