कुछ न रहेगा

15-07-2023

कुछ न रहेगा

मधु शर्मा (अंक: 233, जुलाई द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 
आग की बारिश, 
आकाश को छूता पर्वत
पिघल गया, देखते-देखते। 
 
आग का दरिया, 
विशाल अटूट चट्टानें, 
बहा ले गया, देखते-देखते। 
 
छोटी सी चिंगारी, 
सदियों से खड़ा जंगल, 
राख बन गया, देखते-देखते। 
 
बर्फ़ की दीवार, 
झर-झर करता झरना, 
वहीं जम गया, देखते-देखते। 
 
बेमौसम की बारिश, 
मस्ती में लहलहाता खेत, 
मिट्टी में मिल गया, देखते-देखते। 
 
चन्द पलों का भूकम्प, 
छोटी-बड़ी इमारतें और घर
सब ढेर हो गया, देखते-देखते। 
 
संसार एक रंगमंच, 
कलाकार आप और हम, 
गिर जाएगा पर्दा, देखते-देखते। 

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