मायका बिन माँ के

15-01-2025

मायका बिन माँ के

मधु शर्मा (अंक: 269, जनवरी द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

लम्बा सफ़र हवाई-जहाज़ का तो झट से कट जाता था, 
एयरपोर्ट से परन्तु घर तक मानो, एक युग बीत जाता था। 
 
घुसते ही घर में, गले लग माँ के मैं फूट-फूट कर रोती थी, 
उन आँसुओं में परन्तु मिलन की ख़ुशी टपक रही होती थी। 
 
और अब . . . और अब
दरवाज़े वही, दीवारें वही, फ़र्नीचर भी वही, 
 
बिन माँ के लेकिन अब वह घर, ‘घर’ नहीं। 
फूलों की माला उसकी तस्वीर पर चढ़ी हुई है, 
फूट-फूट रो रही मैं, माँ चुपचाप खड़ी हुई है। 

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