इससे पहले . . . वो जा चुकी थी 

01-09-2025

इससे पहले . . . वो जा चुकी थी 

मधु शर्मा (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

इससे पहले नाम पूछ पाता, वो जा चुकी थी, 
सवाल कोई और सूझ पाता, वो जा चुकी थी। 
 
रात अँधेरी और रास्ता भटक गई थी आँधी में, 
कश्मकश काश भूल पाता, वो जा चुकी थी। 
 
कौन सी थी मजबूरी जो फ़ुटपाथ पर आ बैठी, 
पहेली यह पहले बूझ पाता, वो जा चुकी थी। 
 
मुल्क अनजान अनजानी राहें लोग भी बेगाने, 
बेबस मैं उसे कहाँ ढूँढ़ पाता, वो जा चुकी थी। 
 
लुट रहा था कोई उस पे कोई उसे लूट रहा था, 
इससे पहले उनसे जूझ पाता, वो जा चुकी थी। 
 
दिल और दिमाग़ के बीच हो रही जंग भूलकर, 
ख़ुद के जाल से मैं छूट पाता, वो जा चुकी थी। 
 
कुछ लेने नहीं किसी से, कुछ देने आई थी 'मधु'
बाँध उसके सब्र का टूट पाता, वो जा चुकी थी। 

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