सौतन
मधु शर्मासौ   त   न
न वो झुँझला रहा होता है, 
न अब थका-हारा होता है, 
कतराता कभी मुस्कुराता है, 
लौट कर जब घर आता है। 
आया है कहाँ से, 
जाता कहाँ-कहाँ है, 
रहता किस के यहाँ है, 
ऐसा मिलता क्या वहाँ है। 
कैसी है दिखने में वो कौन है, 
पूछो तो रह जाता क्यों मौन है। 
सोचती हूँ होगा भी क्या ये जानके, 
रहने लगे हैं सकूँ से अब कहीं जाके। 
तोड़ता नहीं दरवाज़े-बर्तन अब कभी, 
सहमे-सहमे नहीं रहते बच्चे अब सभी। 
सही-सलामत माहौल बाहर-अन्दर का, 
सही-सलामत रहे घर मेरी उस सौतन का।
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