कैसे

15-11-2025

कैसे

मधु शर्मा (अंक: 288, नवम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

टुकड़ों-टुकड़ों में बँट गया रब कैसे, 
फिर से उसे जोड़ें तो जोड़ें अब कैसे। 
 
शांत थी नदिया आसमाँ भी साफ़ था, 
डूब गई नाव फिर भी जाने कब कैसे। 
 
बात दिल की ज़ुबान तक आ न पाई, 
जान लिया उसने फिर भी सब कैसे। 
 
बनकर साधु, महलों की हसरत जिसे, 
प्रभु-मिलन की होगी उसे तलब कैसे। 
 
अपनापन हमेशा जताते थे जो अपने, 
वक़्त आने पे देखो सी लिये लब कैसे। 
 
सुना है वो आएँगे इधर भी इक रोज़, 
कटेगी आज से न जाने हर शब कैसे। 

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