रिश्ता बेटी के लिए

01-10-2025

रिश्ता बेटी के लिए

मधु शर्मा (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

शादी से डरने वाली बेटी ने जब मुझसे बोला, 
“मॉम! आय थिंक, आय'म रैडी टू गैट मैरिड“
तो कानों में जैसे उसने अमृत-रस हो घोला। 
 
शादी.कॉम से लेकर इंग्लैंड के हर मंदिर तक, 
और फिर कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक, 
बेटी से परामर्श कर नाम उसका दर्ज करवाया, 
चैक-लिस्ट लेकिन देखकर सिर मेरा चकराया। 
 
बेटी की पसंद-नापसंद का भी ध्यान रखना था, 
क्योंकि मुझे नहीं, उसे किसी के घर बसना था। 
संडे के संडे हम दोनों इंटरनैट चैक किया करतीं, 
लालची व कुछ फ़नी प्रोफ़ाइल देख ख़ूब हँसतीं। 
(गंभीर कुछ विचित्र रिश्ते देख डर भी जाया करतीं) 
 
रस्मों-रिवाज़ की मैं हर समय लिस्ट बनाने लगी, 
शादी वाले चैनल देख शामें अपनी बिताने लगी, 
कि होती कैसे गोद-भराई, मेहँदी-संगीत, सगाई है, 
बैंड-बाजों के बीच ब्याह फिर कैसे होती विदाई है। 
 
छह माह बाद एक दिन बेटी का लंदन से फोन आया, 
“मॉम! आय'म इन लव” झिझकते हुए उसने बताया। 
यह सुन उत्सुक हुई मैंने बौछार सवालों की लगा दी, 
“कौन, कब, कहाँ, कैसे” सुनके वो बेचारी घबरा गई। 
 
अगले संडे भावी दामाद से जब मैं पहली बार मिली, 
मिलकर यूँ लगा बेटे की कमी भगवान ने पूरी कर दी। 
शादी चैनल तो अब भी मैं हर शाम शौक से देखती हूँ, 
चर्च में लेकिन क्या-क्या होता है उसपर ध्यान देती हूँ। 
 
बग़ल में था छोरा और संसार में ढिंढोरा पिटवा दिया, 
घर बैठे-बैठे भगवान ने रेडीमेड दामाद भिजवा दिया। 

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