जल

मधु शर्मा (अंक: 240, नवम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

तालाब की तरंगें, 
झालर वाले झरनें, 
झिलमिलाती झील, 
नदी की कलकल। 
 
यह भी जल है और
वह भी जल लेकिन॥
 
तालाब व झील का
दिखता मटमैला सा। 
नदी का बेक़ाबू जल
तबाही का रेला सा। 
 
सागर का खारा सा
हरा कहीं नीला सा। 
लगता है दर्पण सा, 
झरना जो मीठा सा। 
 
इसलिए ‘मधु’— 
तुम सागर न नदी बनना, 
न तालाब व झील बनना, 
मधुरता लिए झरने जैसी, 
सच दर्शाती दर्पण बनना। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

किशोर साहित्य कहानी
कविता
सजल
हास्य-व्यंग्य कविता
लघुकथा
नज़्म
कहानी
किशोर साहित्य कविता
चिन्तन
सांस्कृतिक कथा
कविता - क्षणिका
पत्र
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में