अड़ियल समाज 

15-04-2025

अड़ियल समाज 

मधु शर्मा (अंक: 275, अप्रैल द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

(सजल)

 

रहने को तो रह रहे हैं बीच उसी के, 
दो किनारे हों जैसे एक ही नदी के। 
 
अड़ियल समाज फ़क़ीर लकीर का, 
हम तर्कशील इक्कीसवीं सदी के। 
 
माँगें तर्क हर निराधार बात का, 
बातों में न आयें हम किसी के। 
 
भाई-बन्धु आँख मूँद मानें उसी की, 
गंगा उल्टी वरना बहा देते कभी के। 
 
है आस, बहेगी विचारधारा नई, 
कसने होंगे ढीले पुर्ज़े उन सभी के। 

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