भूले-भटकों के नाम

15-08-2025

भूले-भटकों के नाम

मधु शर्मा (अंक: 282, अगस्त प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

घर में उसके तुलसी तो रसोई में मीट-अंडे, 
सुबह सत्संग व शाम को पब, संडे के संडे। 
 
सप्ताह के हर दिन पूजे भिन्न-भिन्न भगवान, 
पूजा-पाठ से फिर निपट के बेचे दीन-ईमान। 
 
ख़ून में उसके बह रहे झूठ, बेईमानी व चोरी, 
छूटा घर मगर न छूटी शराब और नशाख़ोरी। 
 
गुरसिक्ख कहलवाये बाँध के सोहणी दस्तार, 
ग़ुलाम नशे का पंजाब, जो था हमारा सरदार। 
 
बग़ल में किशोरी व जेब में शराब की बोतल, 
खाने के लिए परन्तु वो ढूँढ़े शाकाहारी होटल। 
 
हर वक़्त पुड़िया पास हर माह नई रेसिंग कार, 
उसके सिवा सब जानते मौत खड़ी उसके द्वार। 
 
हालत तुम सबकी देख ‘मधु’ परेशान हो रही, 
सुबह के भूले! घर जाओ, देखो, शाम हो रही। 

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