दोषी

मधु शर्मा (अंक: 241, नवम्बर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

दर्द औरों का वह अपनाती रही, 
दुख में हाथ उनका बँटाती रही। 
 
तानें सुन लेती थी हँसकर झेल, 
चुप थी मानकर कर्मों का खेल। 
 
हुआ बहुत खेल तो जाना उसने, 
करेगी अब सामना, ठाना उसने। 
 
पापी वे जो ज़ुल्म पर ज़ुल्म ढायें, 
दोषी वे भी जो ज़ुल्म सहते जायें। 

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